24-10-81  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

"सच्चे आशिक की निशानी"

रूहानी माशूक शिवबाबा अपने सच्चे रूहानी आशिकों के प्रति बोले:-

‘‘आज बाप कहाँ आये हैं और किन्हों से मिलने आयें हैं? जानते हो? किस रूप से विशेष मिलने आयें हैं? जैसे बाप का रूप वैसे बच्चों का रूप। तो आज किस रूप से बाप मिलने आयें हैं, जानते हो? लोंगो ने यह जो गलती कर दी है कि परमात्मा के अनेक रूप हैं, यह गलती है वा राइट है? इस समय बाप अनेक सम्बन्धाें के अनके रूपों से मिलते हैं। तो एक के अनेक रूप, सम्बन्ध के आधार से वा कर्त्तव्य के आधार से प्रैक्टिकल में हैं ना! तो भक्त भी राइट है ना! आज किस रूप में बाप मिलने आयें हैं और कहाँ मिल रहे हैं? आज की मुरली में (सुबह) वह सम्बन्ध सुना है। तो बाप कौन हुआ और आप कौन हुए? आज रूहानी माशूक रूहानी आशिकों से मिलने आये हैं! कहाँ मिलने आये हैं? सबसे ज्यादा मिलने का प्रिय स्थान कौन-सा है? रूहानी माशूक आप आशिकों को आदि के समय में कहाँ पर ले जाते थे, याद है ना? (सागर पर) तो आज भी सर्व खज़ानों और गुणों से सम्पन्न, सागर के कण्ठे पर, साथ में ऊंची स्थिति की पहाड़ी पर, शीतलता की चाँदनी में रूहानी माशूक, रूहानी आशिकों से मिल रहे हैं। सागर है सम्पन्नता का और पहाड़ी है ऊची स्थिति की। सदा शीतल-स्वरूप है चाँदनी। तीनों ही साथ में हैं। आज रूहानी आशिकों को देख रूहानी माशूक हर्षित हो रहे हैं और कौन-सा गीत गातें हैं? (हरेक अपना-अपना गीत सुना रहे हैं) वैसे तो एक ही गीत सुन सकते हैं लेकिन बाप सभी का गीत सुन सकते हैं। आशिक अपना गीत गा रहे हैं और माशूक गीत का रेसपान्ड कर रहे हैं। जो भी गीत गाओ सब ठीक है। हर एक के स्नेह के बोल बाप स्नेह से ही सुनते हैं। आशिकों को माशूक को याद करना सहज है ना? सहज और निरन्तर याद का सम्बन्ध और स्वरूप यह रूहानी आशिक और माशूक का है। याद करना नहीं पड़ता लेकिन याद भूलाते भी भूल नहीं सकती।

आज हर एक आशिक के स्नेह को देख क्या देखा? आशिक अनेक और माशूक एक। लेकिन अनेक अनुभव यही कहते हैं कि मेरा माशूक क्योंकि स्नेह का सागर रूहानी माशूक है! तो सागर बेहद है इसलिए जितने भी, जितना भी स्नेह लें फिर भी सागर अखुट और सम्पन्न है। इसलिए मुझे कम, तुम्हें ज्यादा यह बातें नहीं। लेने वाले जितना लें। स्नेह के भण्डार भरपूर हैं। लेने वाले लेने में नम्बरवार हो जाते हैं लेकिन देने वाला सबको नम्बरवन देता है। लेने वाले समाने में नम्बरवार हो जाते हैं। प्यार करना सबको आता है लेकिन तोड़ निभाने में नम्बर हो जातें हैं। ‘‘मेरा माशूक'' सब कहते हैं लेकिन मेरा कहते भी क्या करतें हैं? जानते हो क्या करते हैं! तो बताओं क्या करते हैं। फिर फेरा लगाने के बाद जब थक जाते हैं तब फिर कहते हैं - ‘‘मेरा माशूक''। और कई आशिक नाज भी बहुत करते हैं। क्या नाज करते हैं? (दीदी, दादी को) नाज-नखरे तो साकार में आपके आगे ही बहुत दिखातें हैं ना! इतना नाज दिखातें हैं - हम तो ऐसे करेंगे, हम तो ऐसे चलेंगे, आपका काम है हमें बदलना। हम तो ऐसे ही हैं। बाप की बातें बाप को सुनाने का नाज रखते हैं। एक बोल तो अच्छी तरह से याद करते हैं - ‘‘जैसी भी हूँ, कैसी भी हूँ लेकिन आपकी हूँ'' माशूक भी कहते - हो तो जमारी लेकिन जोड़ी तो ठीक बनो ना! अगर समान जोड़ी नहीं होगी तो दृश्य देखने वाले क्या कहेंगे? माशूक सजा-सजाया और आशिक बिना श्रृंगारी हुई, शोभेगी? तो आप स्वयं ही सोचो-वह चमकीली ड्रेस वाले और आशिक काली ड्रेस वाली वा दागों वाली ड्रेस पहने हुए, तो अच्छा लगेगा? क्या समझते हो? फिर कहते क्या हैं? जमारे दागों को मिटाना तो आपका काम है। लेकिन जब माशूक ड्रेस ही परिवर्त्तन कर देते हैं, तो वह क्यों नहीं पहनते! दाग मिटाने में भी समय क्यों गंवायें। माशूक का बनना अर्थात् सबका परिवर्त्तन होना। तो पुरानी काली, अनेक दागों वाली ड्रेस की स्मृति क्यों लाते हो अर्थात् बार-बार धारण क्यों करते हो? चमकीली ड्रेस वाले चमकते हुए श्रृंगारधारी बन माशूक के साथ चमकीली दुनिया में क्यों नहीं रहते! वहाँ कोई दाग लग ही नहीं सकता।

 तो हे आशिको, सदा माशूक समान सम्पन्न और सदा चमकीले-स्वरूप में अर्थात् सम्पूर्ण स्वरूप में स्थित रहो! माशूक को और भी एक बात की मेहनत करनी पड़ती है। जानते हो किस बात की मेहनत करनी पड़ती है? वह भी रमणीक बात है। जो वादा किया है माशूक ने आशिकों के साथ, कि ‘‘साथ ले जायेंगे''। तो क्या करते हैं? माशूक है बहुत हल्का और आशिक इतने भारी बन जाते, जो माशूक को ले जाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। तो यह भी जोड़ी अच्छी लगेगी? माशूक कहते हैं - हल्के बन जाओ। तो क्या करते हैं? हल्के होने का साधन जो एक्सरसाइज है, वह करते नहीं। तो हल्के कैसे बने? रूहानी एक्सरसाइज तो जानते हो ना! अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी अव्यक्त फरिश्ता, अभी-अभी साकारी कर्मयोगी। अभी-अभी विश्व सेवाधारी। सेकेण्ड में स्वरूप बन जाना, यह है रूहानी एक्सरसाइज। और कौन-सा बोझ अपने ऊपर रखते हैं? वेस्ट की वेट बहुत है इसलिए हल्के नहीं हो सकते। कोई समय के वेस्ट के वेट में है, कोई संकल्पों के और कोई शक्तियों को वेस्ट करते हैं। कोई सम्बन्ध और सम्पर्क वेस्ट अर्थात् व्यर्थ बना लेते हैं। ऐसे भिन्न-भिन्न प्रकार के वेट बढ़ने के कारण माशूक समान डबल लाइट बन नहीं सकते। सच्चे आशिक की निशानी है - ‘‘माशूक के समान'' अर्थात् माशूक जो है, जैसा है वैसे समान बनना। तो सभी कौन हो? आशिक तो हो ही लेकिन माशूक समान आशिक हो? समानता ही समीपता लाती है! समानता नही तो समीप भी नहीं हो सकते। गायन भी करते हैं कि 16 हजार पटरानियाँ थीं। 16 हजार में भी नम्बर तो होंगें ना! एक माशूक के इतने आशिक दिखाये तो हैं लेकिन अर्थ नहीं समझते हैं। रूहानियत को भूल गये हैं। तो आज रूहानी माशूक, आशिकों को कहते हैं - ‘‘समान बनो'' अर्थात् समीप बनो। अच्छा!

चाँदनी में बैठे हो ना? शीतल-स्वरूप में रहना अर्थात् चाँदनी में बैठना। सदा ही चाँदनी रात में रहो। चादनी रात में ड्रेस भी स्वत: चमकीली हो जायेगी। जहाँ देखेंगे वहाँ चमकते हुए दिखाई देंगे। और सदा सागर के कण्ठे पर रहो अर्थात् सदा सागर समान सम्पन्न स्थिति में रहो। समझा कहाँ रहना है? माशूक को यही किनारा प्रिय है। अच्छा।

सदा माशूक समान, साथ से साथ, हाथ में हाथ अर्थात् स्नेही और सहयोगी, साथ अर्थात् स्नेह, हाथ अर्थात् सहयोग, ऐसे मेरा तो एक माशूक दूसरा न कोई, ऐसी स्थिति में सदा सहज रहने वाले, ऐसे सच्चे आशिकों को रूहानी माशूक का याद-प्यार और नमस्ते।

आज देहली और गुजरात आया है। दिल्ली वाले यह तो नहीं समझते हैं कि जमारे यहाँ जमुना का किनारा है, सागर तो है नहीं। संगम पर सागर है और भविष्य में नदी का किनारा है। संगम में खेला भी सागर के किनारे पर है ना! तो संगम पर है सागर का किनारा और भविष्य की बातें हैं जमुना का किनारा। तो देहली और गुजरात का क्या सम्बन्ध है? देहली है जमुना का किनारा और गुजरात है गर्भा करने वाले। तो किनारे पर रास मशहुर है ना,जमुना किनारे पर। इसीलिए दिल्ली और गुजरात दोनों आ गये हैं। अच्छा-विदेश भी आया है। विदेश वाले जैसे अभी निमन्त्रण देते हैं ना, आओ चक्कर लगाने आओ। दीदी आवे, दादी आवे, फलाने आवें, तो जैसे अभी चक्कर लगाने जाते हो-थोड़े टाइम के लिए, ऐसे ही भविष्य में भी चक्कर लगाने जायेंगे। सेकेण्ड में पहुँचेंगे। देरी नहीं लगेगी। क्योंकि एक्सीडेंट तो होगा नहीं। इसलिए स्पीड की कोई लिमिट की आवश्यकता नहीं। एक ही दिन में सारा चक्कर लगा सकते हो। सारा वर्ल्ड एक दिन में घूम सकते हो। यह एटम एनर्जा आपके काम में आनी है। रिफाइन करने में लगे हुए हैं ना! यह आप लोगों को कोई दु:ख नहीं देगी। सबसे ज्यादा सेवा कौन-सा तत्व करेगा? सूर्य। सूर्य की किरणें भिन्न-भिन्न प्रकार की कमाल दिखायेंगी। यह सब आपके लिए तैयारियाँ हो रही हैं। गैस जलाने की, कोयले जलाने की, लकड़ी जलाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। सबसे छूट जायेंगे। अच्छा-बहुत रंगत देखते जायेंगे। वह मेहनत करेंगे और आप फल खायेंगे। फिर यह वायर्स (तारें) वगैरा लगाने की भी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। बिना मेहनत के नैचुरल नेचर द्वारा नैचुरल प्राप्ति हो जायेगी। लेकिन इसके लिए, नेचर के सुख लेने के लिए भी अपनी आरिजनल नेचर को बनाओ। तब नेचर द्वारा सर्व सुखों को प्राप्त कर सकेंगे। नैचुरल नेचर अर्थात् आनदि संस्कार। सुनते हुए भी अच्छा लगता है तो जब प्रालब्ध में होंगे तो कितना अच्छा लगेगा! जैसे यहाँ पंछी उड़ते हैं, वैसे वहाँ विमान उड़ेंगे। कितने होंगे? जैसे यहाँ पंछियों का संगठन लाइन में जाता हैं, वैसे विमानों के संगठन जायेंगे। ऐसे नहीं एक जायेगा तो दूसरा नहीं जा सकेगा। ऐसे भिन्न-भिन्न डिजाइन में जायेंगे। राज्य फैमिली अपनी डिजाइन में जायेगी, साहूकार अपनी डिजाइन में जायेंगे। जहाँ चाहो वहाँ उतार लो। अभी प्रकृतिजीत बनो तो प्रकृति दासी बनेगी। अभी प्रकृतिजीत कम तो प्रकृति दासी भी कम होगी! समझा-अच्छा।

तो दिल्ली और गुजरात वालों ने अच्छी तरह से मिलन मना लिया ना! गुजरात और दिल्ली वाले आज महादानी भी तो बनने हैं। औरों को चांस देना भी चांसलर बनना है, तो आज दिल्ली और गुजरात चांसलर बन गये। (मधुबन निवासी और सेवाधारियों से मिलना है) सबको पसंद है ना! इसीलिए बापदादा गुजरात और दिल्ली वालों से रूह-रूहान कर रहे हैं, क्योंकि महादानी बन रहे हैं ना। अभी प्रैक्टिकल में महादानी बनो। अच्छा

मधुबन निवासियों से :- मधुबन निवासी कौन हैं? मधुबन निवासियों को कौन-सा टाइटल देंगे? नया कोई टाइटल सुनाओ? इस समय कौन-सी चीज़ मधुबन में लगाई है? फोटो स्टेट मशीन लगाई है ना! तो मधुबन निवासी फोटो स्टेट कापी है। जैसे बाप वैसे बच्चे। उस मशीन में हूबहू होता है ना! मशीन की यही विशेषता है ना जो जरा भी फर्क नहीं आता। तो मधुबन निवासी फोटो कापी हो। मधुबन है - मशीन और मधुबन निवासी हैं - फोटो। तो आपके हर कर्म विधाता की कर्म रेखायें बतायें। कर्म द्वारा ही भाग्य की लकीर खींचते हो तो आप सबका हर कर्म श्रेष्ठ-भाग्य की कर्म की लकीर खींचने वाला हो। जैसे बापदादा का हर कर्म स्व के प्रति और अनेकों के प्रति भाग्य की लकीर खींचने वाला रहा, ऐसे ही बाप समान। मधुबन में इतने साधन, इतना सहयोग, इतना श्रेष्ठ संग प्राप्त है, अप्राप्त नहीं कोई वस्तु मधुबन के भण्डारे में, तो सर्व प्राप्तिवान क्या हो गये? सम्पूर्ण हो गये ना! किस बात की कमी है? अगर कमी है तो स्व के धारणा की। मधुबन वालों का सदा एक निजी संस्कार इमर्ज रूप में होना चाहिए। वह कौन-सा, कर्म में सफलता पाने के लिए ब्रह्मा बाप का निजी संस्कार कौन-सा था जो आप सबका भी वही संस्कार हो? ‘‘हाँ जी'' के साथसाथ ‘‘पहले आप'', ‘‘पहले मैं'' नहीं, पहले आप। जैसे ब्रह्मा बाप ने पहले जगत-अम्बा को आगे किया ना! कोई भी स्थान में पहले बच्चे, हर बात में बच्चों को अपने से आगे रखा। जगत-अम्बा को अपने आगे रखा। ‘‘पहले आप'' वाला ही ‘‘हाँ जी'' कर सकता है। इसलिए मुख्य बात है ‘‘पहले आप'' लेकिन शुभ भावना से। कहने मात्र नहीं, लेकिन शुभचिन्तक की भावना से। शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना के आधार से ‘पहले आप' करने वाला स्वयं ही पहले हो जाता है। पहले आप कहना ही पहला नम्बर होना है। जैसे बाप जगदम्बा को पहले किया, बच्चों को पहले किया लेकिन फिर भी नम्बरवन गया ना! इसमें कोई स्वार्थ नहीं रखा, नि:स्वार्थ ‘पहले आप' कहा, करके दिखाया। ऐसे ही पहले आप का पाठ पक्का हो। इसने किया अर्थात् मैंने किया। इसने क्यों किया, मैं ही करूँ, मैं क्यों नहीं करूँ, मैं नहीं कर सकता हूँ क्या! यह भाव नहीं। उसने किया तो भी बाप की सेवा, मैंने किया तो भी बाप की सेवा। यहाँ कोई को अपना-अपना धन्धा तो नहीं है ना! एक ही बाप का धंधा है। ईश्वरीय सेवा पर हो। लिखते भी हो गाडली सर्विस, मेरी सर्विस तो नहीं लिखते हो ना! जैसा बाप एक है, सेवा भी एक है, ऐसे ही इसने किया, मैंने किया वह भी एक। जो जितना करता, उसे और आगे बढ़ाओ। मैं आगे बढूँ, नहीं दूसरों को आगे बढ़ाकर आगे बढ़ो। सबको साथ लेकर जाना है ना! बाप के साथ सब जायेंगे अर्थात् आपस में भी तो साथ-साथ होंगे ना! जब यही भावना हरेक में आ जाए तो ब्रह्मा बाप की फोटो स्टेट कापी हो जाओ।

मधुबन निवासियों को देखा अर्थात् ब्रह्मा को देखा क्योंकि कापी तो वही है ना! फिर ऐसा कोई नहीं कहेगा कि हमने तो ब्रह्मा बाप को देखा ही नहीं। आपके कर्म, आपकी स्थिति ब्रह्मा बाप को स्पष्ट दिखाये। यह है मधुबन निवासियों की विशेषता। क्योंकि मधुबन निवासियों को सब फालो करते हैं। तो मधुबन वाले एक-एक मास्टर ब्रह्मा हो। अभी देखो ब्रह्मा बाप का फोटो किसी को भी दो तो प्यार से सम्भाल लेते हैं, सबसे बढ़िया सौगात इसी को मानते हैं तो आप सब भी ब्रह्मा बाप की फोटो हो जाओ। ब्रह्मा बाप समान हो जाओ तो आप भी अमूल्य सौगात हो जायेंगे।

ब्रह्मा बाप की विशेषता सूरत में क्या देखी? गम्भीरता के चिन्ह भी और मुस्कराहट भी। गम्भीरता अर्थात् अन्तर्मुखता और साथसाथ रमणीकता। अन्तर्मुखी की निशानी सदा सागर के तले में खोये हुए गम्भीरमूर्त्त। मननाचिंतन करने वाला चेहरा और फिर रमणीक अर्थात् मुस्कराता हुआ चेहरा। तो दोनों ही लक्षण सूरत में देखे ना! ऐसे आपकी सूरत भी ब्रह्मा बाप के कापी स्वरूप हो। सूरत और सीरत से ब्रह्मा बाप दिखाई दे। क्योंकि ब्रह्मा बाप का सेवास्थान, कर्मभूमि तो मधुबन है ना! तो इस भूमि के रहने वालों द्वारा वही कर्म और सेवा प्रत्यक्ष होनी चाहिए। इसी आशा के दीपक को सदा जगाओ। ब्रह्मा बाप की आप बच्चों प्रति यही आश है। अब ऐसी दीपावली मनाओ। बापदादा की इस एक आशा का दीपक जगाओ। जब हरेक यह दीपक जगायेगा तो दीपमाला तो हो ही जायेगी ना! दीपमाला में भी देखो अगर बीच में एक दो दीपक बुझे हुए हों तो अच्छा लगेगा? अगर बीच-बीच में एक दो दीपक भी टिमटिमाता है तो अच्छा नहीं लगता। इसलिए सर्व जगे हुए दीपकों की माला।

मधुबन निवासी सब जस्टिस होने चाहिए, सेल्फ जस्टिस। कोई भी बात करने के पहले स्वयं जज करो तो न स्वयं का समय जायेगा और न दूसरों का। मधुबन तो ‘पीस-पैलेस' है। मन की भी पीस, मुख की भी पीस, तब मधुबन पीस पैलेस से पीस की किरणें फैलेंगी। आप पीस-पैलेस वालों से सभी पीस की भिक्षा माँगते हैं, क्योंकि वे स्वयं ही स्वयं से तंग हो रहे हैं। विनाशकारियों के पास अभी तक आपके पीस की किरणें पहुँचती नहीं हैं इसीलिए कशमकश में हैं। कभी शान्त, कभी अशान्त। तो उन्हों को शान्त करने के लिए पीस-पैलेस से पीस की किरणें जानी चाहिए, तब उन्हों की बुद्धि में ही एक फाइनल फैसला होगा, खत्म करेंगे और शान्त हो शान्तिधाम में चले जायेंगे। तो ऐसे भिखारियों को अब महादानी बन महादान वा वरदान देने वाले बनो।

बापदादा तो सदा समझते हैं कि मधुबन वाले विश्व को बापदादा के समीप लाने वाले समीप रत्न हैं। तो अब ऐसा सबूत दिखाओ। जब ब्रह्मा बाप समान सब कापियाँ तैयार हो जायेंगी तब बेहद का बारूद चलेगा, फटाके छूटेंगे और ताजपोशी होगी। तो अब यह डेट फिक्स करो, जब आप सब ब्रह्मा बाप की बिल्कुल फोटो कापी होंगे तब ही यह डेट आयेगी। मधुबन निवासी जो चाहें वह कर सकते हैं। अच्छा-तो अभी सब क्या सोच रहे हो।

बापदादा के पास मन के संकल्पों की ही कैमरा नहीं लेकिन हरेक के मन में क्या चलता है, वह भी बापदादा स्पष्ट देख सकते हैं। साइंस वाले तो अभी तक कोशिश ही कर रहे हैं कि ऐसी कैमरा निकालें जो अन्दर के संकल्प की रेखायें मालूम हो जाएं। वे बिचारे मेहनत बहुत कर रहे हैं। यह सब इन्वेन्शन करते-करते रह जायेंगे और आप तैयार हुए साधन कार्य में लायेंगे। अच्छा।

पार्टियों के साथ :- जिस स्थान पर पहुँचे हो - इस स्थान के महत्व को अच्छी तरह से जान लिया है? महान तीर्थ स्थान पर आये हो। तो यहाँ आने से क्या बन गये? पुण्य आत्मा। तो सदा यही स्मृति में रखना कि हम पुण्य आत्मा हैं। हर संवल्प सर्व प्रति शुभ भावना और कामना का, यही बड़े ते बड़ा पुण्य है। तो तीर्थ स्थान पर जा करके कुछ छोड़कर आते हैं, कुछ लेकर आते हैं, इसलिए जो भी आपकी प्रगति में विघ्न डालने वाली चीज़ हो वह छोड़कर जाना और सदा सद्गति की ओर तीव्रगति से चलते रहना। सद्गतिदाता के बच्चों का संग पुण्य आत्मा सहज ही बना देगा। बहुत श्रेष्ठ लक है, भाग्यवान आत्मायें हो। अभी इसी भाग्य को सदा कायम रखने के लिए सदा श्रेष्ठ संग। संग के रंग में सदा श्रेष्ठ रहेंगे। बाप तो सभी बच्चों को सदा सिकीलधे बच्चे ही देखते हैं। अभी श्रेष्ठ वर्से के अधिकारी बनकर चलते चलो। थोड़े में खुश नहीं हो जाना। दाता के बच्चे थोड़े में खुश नहीं होते, सब कुछ लेते हैं। तो पूरा ही वर्सा, पूरा अधिकार लेना है। इसको कहा जाता है - सदा श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मायें। अच्छा।

टीचर्स के साथ :- ‘‘सभी बापदादा की विशेष सहयोगी आत्मायें हो। सहयोगी वही बन सकता है जो स्नेही है। जहाँ स्नेह होगा वहाँ सहयोग देने के सिवाए रह नहीं सकेंगे। तो सेवाधारी अर्थात् स्नेही और सहयोगी। साथ रहने वाले, साथ देने वाले और फिर है लास्ट में साथ चलने वाले। तो तीनों में एवररेडी। साथ रहना और देना अभी है, चलना पीछे है। जब दोनों ही बातें ठीक हो जायेंगी तो तीसरे की डेट भी आ जायेगी। आप सब निमित्त आत्मायें हो ना! जितना आप लोग साथ देंगे और साथ रहेंगे उतना आपको देखकर औरों का भी उंमग उत्साह स्वत: बढेंगा। एक आप अनेकों के निमित्त हो। मैं नहीं लेकिन बाप ने निमित्त बनाया है। मैं-पन तो समाप्त हो गया ना! मैं के बजाए ‘मेरा बाबा', मैंने किया, मैंने कहा, यह नहीं, बाबा ने कराया, बाबा ने किया, फिर देखो सफलता सहज हो जायेगी। आपके मुख से ‘‘बाबा-बाबा'' जितना निकलेगा उतना अनेकों को बाबा का बना सकेंगे। सबके मुख से यही निकले कि इनकी तात और बात में बाबा-ही-बाबा है तब औरों को भी तात लग जायेगी। जो बात-तात अर्थात् लगन में होगी वही तात वही बात होगी। बापदादा छोटी-छोटी कुमारियों की हिम्मत औरा त्याग देखकर हर्षित होते हैं। बड़ों ने तो चखकर फिर त्याग किया है, वह कोई बड़ी बात नहीं। चखकर देखा और फिर छोड़ा। लेकिन इन्होंनें तो पहले ही समझ का काम कर लिया है। जितनी छोटी उतनी बड़ी समझदार।

दिल्ली और गुजरात है, कोई कम थोड़े ही हैं। अभी दिल्ली में बिजनेसमैन नहीं निकले हैं। एक बिजनेसमैन लाखों को आगे बढ़ा सकता है। क्योंकि एक बिजनेसमैन अनेकों के सम्पर्क में आते हैं। जितनों के सम्पर्क में आते हैं उनसे आधे भी सन्देश सुनने वाले निकले तो भी कितने हो जायेंगे! यह भी बिजनेस है। बिजनेसमैन को कितने शेयर्स मिलेंगे। सेवा का चांस बिजनेसमैन को अच्छा है। अभी बिजनेसमैन का ग्रुप तैयार करके आना।

मधुबन में आये हुए सेवाधारियों के साथ

जितना बड़ा महत्व यज्ञ का है, उतना ही यज्ञ-सेवाधारियों का भी महत्व है। इसी सेवा का यादगार अब तक अनेक धर्मस्थानों में कायम है। जो भी पीछे वाले धर्म स्थान बनते हैं, उसी स्थानों की सेवा का भी महत्व समझते हैं। तो चैतन्य महायज्ञ के सेवाधारियों का कितना महत्व है। यह सेवा नहीं कर रहे हो लेकिन पद्मगुणा मेवा खा रहे हो। सम्पत्तिवान जो होते हैं ना उसके लिए कहते हैं - यह सदा ही मेवा खाते रहते हैं। गरीब के लिए कहते - यह दाल-रोटी खाते और साहूकार के लिए कहते यह तो मेवा खाते। सेवा- धारी अर्थात् मेवा खाने वाले। तो कितने श्रेष्ठ हो गये! हर कदम में डबल कमाई। मंसा भी और कर्मणा भी। मंसा अर्थात् याद में रहकर सेवा करते हो तो डबल कमाई हो गई ना! तो कौन कितनी कमाई करता है वह हरेक स्वयं ही जान सकता है। सेवा का भण्डार भरपूर है। महायज्ञ अर्थात् सेवा का भण्डार। सेवा का भण्डार भरपूर है जो जितनी करे। हद भी नहीं है और खुटने वाली भी नहीं है। यह भी हद नहीं है कि यह काम पूरा हो गया अब क्या करूँ, भण्डार भरपूर। बेहद का भण्डार है इसलिए जितनी सेवा करो उतनी कर सकते हो। माला-माल बनने की लाटरी है। लाटरी तो मिली है, अभी लाटरी में कौन-सी लाटरी ली है, पद्मों वाली, लाखों वाली, हजार वाली या सौ वाली, वह आपके ऊपर है। लाटरी महान है, पद्मों की भी ले सकते हो।

बापदादा भी सेवाधारी बनकर आते हैं। वर्ल्ड आलमाइटी अथार्टी का पहला स्वरूप तो ‘वर्ल्ड सवेंन्ट' है ना! तो जैसे बाप वैसे बच्चों का गायन है। निर्विघ्न सेवाधारी हो ना! सेवा के बीच में कोई विघ्न तो नहीं आता। वायुमण्डल का, संग का, आलस्य का, भिन्नभिन्न विघ्न हैं तो किसी भी प्रकार का विघ्न आया तो सेवा खण्डित हो गई ना! अखण्ड सेवा। किसी प्रकार के विघ्न में कभी भी नहीं आना। निर्विघ्न सेवा, उसका ही महत्व है। जरा भी संकल्प मात्र भी विघ्न न हो। ऐसे अखण्ड सेवाधारी कभी किसी चक्र में नहीं आते। कभी कोई व्यर्थ चक्र में नहीं आना तब सेवा सफल हो जायेगी। नहीं तो सेवा की सफलता नहीं होगी। अच्छा। कभी कोई व्यर्थ चक्र में नहीं आना तब सेवा सफल हो जायेगी। नहीं तो सेवा की सफलता नहीं होगी। अच्छा।